शानी न होते तो अल्‍पसंख्यकों का असुरक्षित होना कौन बताता?

साहित्‍य के गलियारों में अकसर यह बहस होती है कि दलित साहित्‍य, महिला साहित्‍य, मुस्लिम साहित्‍य की प्रतिनिधि रचना क्‍या इसी वर्ग के लोग कर सकते हैं या कोई ‘बाहरी’ भी अपनी अनुभूति के स्‍तर से इन वर्गों के हालात को समझकर लिख सकता है? इस बहस से इतर मूल …

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